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(२१०)
क्त्व प्राप्त थाय छे तेवुं कृष्ण अने श्रेणिक वगेरेने निश्चयसम्यक्त्व घटतुं नथी. कारणके तेओमां निश्चयसम्यक्त्व लक्षणोनी उत्पत्तिनो अभाव छे. चोथागुणस्थानकमां क्षायिकसम्यक्त्व प्राप्त थइ शके छे परंतु भाव चारित्ररुप निश्चय सम्यक्त्व के जे भावचारित्र स्वरूप छे तेज चोथा गुणस्थानकमां प्राप्त थइ शकतुं नथी. दीक्षाचारित्र लेवानो जे हृदयमां भाव थाय छे तेने भावचारित्र कहेवामां आवतुं नथी, परंतु आत्मा ज्यारे दीक्षा अंगीकार करी साधुनां वतो पाळतो छतो सातमा अप्रमत्त गुणठाणाना विशुद्ध ज्ञान दर्शन चारित्रपरिणाम वडे परिणमे छे त्यारे तेने भावचारित्रनी प्राप्ति कथवामां आवे छे अने ते भावचारित्र रूप मौनने निश्चय सम्यक्त्व कथवामां आवे छे.
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