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(१२७) धोगतिने सेवे छे. संसारमा कोइ कोइनुं नथी. चेतन पर जड वस्तुने पोतानी मानी अनंता दुःख भोगवे छे. खरो शत्रु दुर्ध्यान छ ए दुर्ध्याने प्रसन्नचंद्रराजर्षिने सातमी नरकनां दलीयां संचाव्या. ( एकठां कराव्यां) पण धर्मध्यान रूपी योद्धाए आवी दुनिने हठावी, मोक्षरुप स्त्रीनो मेळाप करावी आप्यो. आश्चर्य एटलुंज थाय छे के जीव पोते हित तथा अहितने जाणे छे, छतां अहितमा वर्ते छे. निग्रंथ महात्माओ हृदयरूप महेलमां चंडाल सरखा आर्तध्यानने प्रवेश करवा देता नथी. आत्महितैषियोए हुं कोण छु, क्याथी आव्यो, क्यां जाइश, तारु कोण, तुं कोण, ए वाक्यनो उपयोग पूर्वक विचार करी त्याज्य वस्तुनो त्याग करवो,
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