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पंचपरमेष्ठी पूजा.
प्रणमुं प्रभु महावीर जिन, चोवीसमा अरिहंत, वर्तमान शासनपति, परमेश्वर शिवकंत. ॥ १ ॥ परमेष्ठीपूजा रचुं द्रव्यने भावथी बेश; भणतां सुएतां आचरे, नासे सर्वे क्लेश ॥ २ ॥ अर्हन् सिद्धने सूरिजी वाचक मुनि जयकार; परमेष्ठी मंगलकरा, सुखशांतिदातार ॥ ३॥
प्रथम अरिहंतपदपूजा.
चउनिक्षेपे ध्यावतां, स्तवतां पूजतां सार; अरिहंत प्रभु वदतां कर्म टळे निर्धार ॥ १ ॥ अरिहंत बे आतमा, गुणपर्याये शुद्ध प्रभु भजतां निज आतमा, यात्रे प्रभु जिन बुद्ध. ॥ २ ॥ दोष अढार रहित विभु, अरिहंत जिनराज; पूजंतां प्रगटे प्रभु, त्रण्यभुवनशिरताज ॥ ३ ॥
( राग वेलावल मेरुशिखर न्हवरावे हो जिनपति, ए राग. )
अरिहंत जिनपति भजीए हो जावे, अरिहंत जिनपति भजीए ॥ द्रव्यने जावथी वीशस्थानक पद, हर्षोल्लासे आराधे; अनंत पुण्यमयीजिननामने, बांधी प्रभुपद साधे हो. अरिहंत जिनपति भजीए
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