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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५१ गुरुण ॥१॥ आतमअसंख्यप्रदेशविहारी, द्रव्य. जावव्यवहारी; पडावश्यकधर्माचारी, उत्कृष्टा अन गारीरे; गुरु० ॥२॥ अंतरथी नहीं जडनीयारी, यातम परिणति प्यारी; क्रियायोगी साचा उपकारी, संत सदा जयकारीरे. गुरु० ॥ ३॥ गुरुमूर्ति द्रव्यभावथी प्यारी, शुद्धप्रदेशी सारी; कर्म करे पण निबंध भारी, सर्वजीव आधारी रे. गुरु० ॥ ४॥ गुरुनी अकलकला सहु न्यारी, समजे नहि अविचारी; बुद्धिसागर ध्याननुं नैवेद्य-धरतां सुख निर्धारीरे. गुरु० ॥ ५॥ ___ॐ ह्री श्री अहं महावीरपरमेश्वरपट्टपरंपरा शोजितगुरुपदध्यानार्थ नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ अष्टमी ज्ञानानन्दानुनवरूपा फलपूजा. आतम आनंद पामीने, जडरसपेलीपार; आस्मदशाना अनुजवी, जय जय गुरु सुखकार. ॥१॥ आतमअनुभवफलतणो, आनंदरस छे अनंत; आतमरसी ज्ञानी गुरु, पामे भवनो अंत. ॥२॥ द्रव्यभाव फल पामवा, फलथी पूजे जेह; भक्त शिष्य सुखरस लहे, पडे न पाछो तेह ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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