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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ खोळख्युं, जेनो रुडो महेल; वास खरो मुज एहमां, वसतां शिवसुख सहेल. ॥ ३ ॥ ( नमोरे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर - ए राग. ) वास्तुकनावपूजा निजभावे, आतमनी शुद्ध दाखी रे; वास वासे चेतन जे मध्ये, तेहनी पूजा नाखीरे. श्रीसंखेश्वरपासजी गावो ॥ १ ॥ असंख्य प्रदेश आतमना जाणो, शुद्धवास जीव होयरे; गुणपर्याय स्वभाव अनंता, एकेकप्रदेशे जोयरे. श्री संखे० ॥ २ ॥ ज्ञाता ज्ञेय ने ज्ञान त्रिभंगी, आतममांही समाय; स्ति नास्ति समकाले लाधे, एवो आतमरायरे. श्रीसंखे० ॥ ३ ॥ धर्माधर्मने पुद्गलाकाश, तेहतणा प्रदेशरे; गुणपर्यायधर्म तसकेरा, नहि जीवप्रदेश लेशरे. श्रीसंखे० ॥ ४ ॥ शुद्ध बुद्ध परमात्मस्वरूपी, अव्याबाध अभंगरे; अविनाशी अकलंक अजोगी, जोगी अयोगी असंगरे. श्री संखे० ॥ ५ ॥ नित्यानित्यने अकानेक, सदसत्भाव विचाररे; वक्तव्यावक्तव्य ए आठ, -पक्षतणो आधाररे. श्री संखे० ॥६॥ शुद्धस्वरूपी ज्ञानानंदी, चेतनवास कहायरे; सुख अनंतु चेतनघरमां, वचनअगोचर थायरे. श्रीसंखे० ॥७॥ आत्मथकी लूटे जब कर्म, तब पामे शिवस्थान रे; शाश्वत अमल अचलपद जावे, वास्तुक For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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