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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ ऋषभदेवतीर्थकराए, निरखी आनंद याय. भवि०॥९॥ तास पसाये एरवी ए, पूजा अष्टप्रकार: भवि० भणो भणावो सांभळो ए, भावथकी नरनार जवि० | १० | मेरुपरे नित्य स्थिर थर ए, करजो भविमन वास; भवि० चंद्र सूर्य ज्यां लगी रहे ए, जगमां करता प्रकाश. वि० ||११|| त्यां लगी पूजा विस्तरो ए, शांति तुष्टि करनार; भवि० ऋद्धि वृद्धि सुखसंपदा ए, पूजाथी थानार. भवि०॥१२॥ संवत योगणीस उपरे ए, ओगसाठनी साल; भवि० फागणवदिएकादशी ए, पूजा पूर्ण विशाल, भवि० ॥१३॥ कलश. एम सकलसुखकर द्रव्य भावे, पूजा अष्टप्रका री ए; जणे भणावे सुणे जे जवी, ते शिवसुख लहे जारी ए. तपगच्छशाखागगन मंडळ - दिवाकरपेरे बाजता, वैराग्यरंगे व्याप्युं जस मन, महिमा जग जस गाजता. ॥१॥ रविसागर गुरु प्रेमे प्रणमुं, संवेगी सिरदार ए; जस नाम देतां सकलमंगल, पामे भवी - नरनार ए. तस पदपंकज भृंगसम श्री - सुखसागरगुरुबाल ए एम बुद्धिसागर शिवसनातन, पामे मंगलमाल ए. ॥२॥ ॐ० प० फलं यजामहे स्वाहा ॥ इति ष्टप्रकारी पूजा संपूर्णा. For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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