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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ ल्लस्या, चोविश जिनस्तव भावे करतां, अंतरमा उप. योगे वरना, घातीको वेगे खरतां, नरनारी केवल पद वरतां. जग० ॥ १ ॥ एकतान प्रजुसाथे जागे, मनडुं वर्ते प्रभुना रागे; श्रद्धाप्रीतिलय जो लागे, मनडुं वर्ते नववैराग्ये. जगः ॥२॥ प्रभु ज्ञेय स्वनावे घट आवे, कर्तव्य सकलयोगे थावे; बातम निर्लेपपणुं भावे, आतम परमातम थे जावे. जग ॥ ३ ॥ परमातमने दिलमां धारो, आविर्भावे घट उजियारो; नहीं नामरूपनो अहंकारो, कर्तव्य करे आवे पारो. जग० ॥४॥ चावीश जिनवर साथे प्रीति, तेथी नासे सघळी नीति; प्रगटे जगमा साची नीति, प्रामाणिकता साचीरीति. जग ॥५॥ मुजध्याने ध्येयपणे आवो, मुज ज्योते हो आविर्भावो; एकमेकस्वरूपछे ल्हावो, परमानंदे प्रगटे दावो. जग ॥ ६॥ सर्वे जिनवरपूजा गावो, वंदो प्रणमो प्रेमे ध्यावो; ध्येयाकारे घट प्रणमावो; प्रभुसम निज आतम प्रकटावो. जग० ॥७॥ प्रभु स्तवतां केवलने मुक्ति, भक्ति आवश्यकनी रीति प्रभु स्तवतां प्रगटे गुणनीति, आचारे रहे नहि दुर्नीति. जग० ॥ ७ ॥ प्रनुरूपे औकय बनी भळवू, प्रभुज्योते ज्योतथकी मळवू; पछी जगमां नहिछे For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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