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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२९ ( सांभळशो मुनि संगम रागे उपशम श्रेणि चहिवारे. ए राग. ) धन्य महावीर जिन जयकारी जगमांही उपकारीरे; ध्यान धरीने केवल पामी, मुक्तिवर्या सुखकारीरे. धन्य० ॥ १ ॥ सर्वप्रकारनां ध्यान प्रकाश्यां, उपदेश्यां नरनारीरे; आर्त रौद्रने धर्म शुकल चउ, समजो गुरुगम धारीरे. धन्य ॥ २ ॥ पिंस्थने पदस्थ ने ध्यावो, रूपस्थथी लय लावोरे; रूपातीतना ध्याने केवल - ज्ञानने क्षणमां पावोरे. धन्य० ॥ ३ ॥ ध्येयमां अंतर्मुहूर्त ध्यान ज, थातां जीवन्मुक्तिरे; आत्मानंदरसोदधि प्रगटे, विषयोमां न आसक्तिरे. धन्य० ॥ ४ ॥ अंतर्मुहूरतध्यानप्रतीते, आत्म समाधि प्रगटेरे; खातां पीनां कार्य करंतां, शुद्ध स्वरूप न विघंटेरे. धन्य० ॥ ५ ॥ श्रुतज्ञानी ध्याने अधिकारी, नार्थी अविकारीरे; आतमरंगी ध्यानी संगी, निःसंगी नरनारीरे, धन्य० ॥ ६ ॥ गुरुकुलवासी गुरुना भक्तो, सर्वस्वार्पणकारीर; लोकादिसंज्ञापरिहारी, ध्यानी बने गुणधारीरे. धन्य० ॥ ७ ॥ धर्म शुकल बे भावना भावो, अशुभ ध्यान हठावोरे; शुद्धातम उपयोग जमावो, परमातम प्रगटावोरे. धन्य० ॥ ८ ॥ श्रशुध्यानठाण त्रेसठ वारो, शुद्धस्वरूप विचारोरे; मानवभवनी क्षय ४२ For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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