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दशमी ब्रह्मचर्य धर्मपूजा.
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ब्रह्मचर्य सम को नहीं, सर्वधर्ममां जावब्रह्म आगळे, अन्य सकल छे हेठ सुदर्शन जंबुने, स्थूलिनद्र ज अनगार; गावो पूजो भावथी, घ्यावो नरने नार ॥ २ ॥ ब्रह्म मळे ब्रह्मचर्यथी, भाखे वीरजिनेश; द्रव्यभावथी धारतां, नासे सघळा क्लेश. ॥ ३ ॥
( ए व्रत जगमां दीवो मेरे प्यारे, ए व्रत जगमां दीवो. ए राग. )
ब्रह्मचर्य सुखकारी हो जगमां, आतम आनंदकारी; ॥ द्रव्यथकी देहवीर्यनी रक्षा, स्त्रीमैथुन परिहारी; भावथकी परपरिणतित्यागे, ब्रह्मवती जयकारी हो. जगमां ब्रह्मचर्य सुखकारी ॥ १ ॥ पांचे इन्द्रिय त्रेवीश विषयो, शुभ अशुभ नहीं लागे; स्वप्ने पण नहीं कामनी वृत्ति, ब्रह्मभाव घट जागे हो. जगमां० ॥ २ ॥ मैथुनजोगे सुख नहीं शांति, अधि व्याधि उपाधि. जाणी मुनिवर ब्रह्मस्वरूपे,
तें वे निरुपाधि हो. जगमां० ॥३॥ कामी व्यभिचारी महादुःखी, रूप राग जरमाया; हडकाया कूतरनी पेठे, क्यांये सुख नहीं पाया हो, जगमां० ॥४॥ कामभोगथी याय न शांति, उलटी कामनी वृद्धि; जाणी कामनी
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श्रेष्ठ, द्रव्य
॥ १ ॥ नेमि