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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयमी क्षणमा मुक्ति पद, पामे शाश्वत शर्म. ॥२॥ धारणा ध्यान समाधिमय, संयम छे सुखकार; संयम धर्मनी पूजना, करशो नरने नार. ॥३॥ ( गंगातट तपो वनमारे बनी रचना भारी. ए राग. ) साधो संयम साधुरे, के तम उपयोगे; पडो नहि मोह वनमारे, रहो मन वैराग्ये. साधो ॥१॥ (साखी)लीन बनोनिज आत्ममां,गुण पर्यायने ध्याश्; मोहपरिणति वारतां, प्रगटे मुक्तिवधाइ; ॥ आतम श्रद्धा प्रेमेरे, के मस्तदशा प्रगटे; निजशक्ति अनंतीरे, प्रकटे तम विघटे. साधो० ॥२॥ (साखी) क्षण पण संयमी संगवण, जीवो नहि नरनार; संयम साधन साध्य छे, आत्मशुद्धता सार.पंच समतिने गुप्तिरे, के साधन जेह वरे; पूर्णानन्दी आतमरे, अनुभव तेह करे. साधो० ॥३॥ (साखी) व्रत तप जपदम साधनो, सापेक्षे छे सत्य; मुनिवरनां संयममयी, सघळां जाणो कृत्य। भक्ति कर्मने ज्ञानेरे, संयम शक्ति वधे; शुद्ध आत्मो पयोगेरे, साधन सत्य सधे. साधो ॥४॥ (साखी) उपचारिक धर्मज भलो, संयमरूपी सर्व; तेमां पण संयमीजनो, करो न क्यारे गर्व ॥ हग्धर्म निवारीरे, संयम सहेजे सजो; बुद्धिसागरप्रेमेरे, महावीरदेव For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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