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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ बारमी ब्रह्मचर्यपदपूजा. रत्न मणिमय मंदिरो, प्रतिमाओ करनार; तेथी अनंतु फल लहे, ब्रह्मचर्य धरनार. ॥ १ ॥ (धन्यधन्य जगमां नरनेनार, विमलाचल दर्शन करनार. ए राग.) धन्य धन्य जगमां ते नरनार, निर्मल ब्रह्मचर्य धरनार, पूजो ब्रह्मचारी नरनार, धारो ब्रह्मचर्य सुखकार ॥ रत्नमणि कंचननी प्रतिमा, चैत्य करावणहार; अनंतगणुं फल तेथी पामे, ब्रह्मचर्य धरनार. धन्य ॥ १॥ सहसचोराशीमुनिवरदाने, जे फल नकी थनार; ते फल विजयने विजयाभक्ते, ययुं धन्य अवतार. धन्यः ॥२॥ द्रव्यथी कायिकवीर्यनी रक्षा, आत्म रमणता सार-; नावथी ब्रह्मचर्य छे एवं, सह शक्ति दातार. धन्य० ॥ ३॥ सर्वप्रकारे विषयनी वांछा, त्यागी जे रहेनार; अनासक्तिए करे कृत्य सहु, ब्रह्मचारी शिरदार, धन्य० ॥ ४ ॥ देश थकी ने सर्वथकी जे, ब्रह्मचर्यधरनार; इन्द्रादिक तेना पद पूजे, देवो स्हाये थनार, धन्यः ॥ ५॥ दिव्यऔदारिकत्रिकरणयोगे,सर्वकाम हरनार, बुद्धिसागर ब्रह्मचर्यनी, अनंत शक्ति उदार, धन्य० ॥ ६॥ ॐ प० ब्रह्मचर्यपदपूजार्थ जलं० य स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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