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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६८) सहे परिषह ने क्लेश हो. जगमा चा• ॥२॥ नेमि सागर गुरुवरेरे, निजपट्टे गुणी जाण; थाप्या रविसागर गुरुरे, सर्व समय सावधान हो. जगमां चा० ॥३॥ धर्म क्रिया योगी मुनिवरारे, सागरवर गंभोर, सिंहनो पेठे पराक्रमीरे, मेरुपेठे धोर हो. जगमा चा० ॥ ४ ॥ मूळ उत्तर चारित्रनोरे, धरता शुभ व्यवहार; धर्म प्रभावना बहु करेरे, सुधरावे आचार हो. जगमां चा ॥५॥ कहेणी रहेणी जेहनीरे, सरखो मुनि शिरदार; ते कालनामुनिवृन्दमारे; उ. त्कृष्टा अनगार हो. ज. चा०॥ ६॥ भावसागरजी नामनारे, शिष्य कर्या अनगार; बोजा सुखसागर कर्यारे, समता गुणभंडार हो. ज. चा ॥७॥ जाणे गुरुर्नु सहु गुरुरे, गुरुथी जेह अनिन्न; बुद्धिसागर सद्गुरुरे, समभावे लयलीन हो. ज० चा ॥७॥ ॐ गुरुपदपूजार्थ नैवेद्यं यः स्वाहा ॥ अष्टमो ध्यानसमाधिरूपा फलपूजा. ध्यान समाधि योगथी, प्रगटे सहजानन्द; स. हजानन्दने पामवा, धर्म प्रवृत्ति वृन्द. ॥ १ ॥ दर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.008633
Book TitlePooja Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1922
Total Pages417
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size15 MB
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