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( १२९ ) अष्टांग योगनी पूजा.
प्रणमुं तीर्थकर विभु, चोवीशमा जिनराज; परमेश्वर महावीर देव, योगेश्वर सम्राट. ॥ १ ॥ योगनां अंगो आठ छे, तेह प्रकाश्यां बेश; समवस रणमां बेसीने, दीघो शुभ उपदेश ॥ २ ॥ इवनां कांगो चार बे, राजनां अंगो चार; निश्चय ने व्यवहारथी, समजी ग्रहो नरनार ॥ ३ ॥ दर्शन ज्ञानने चरणमा, अंगो आठ समाय; पंचाचारने समितिमां, गुप्तिमांही सुहाय ॥ ४ ॥ स्याद्वादी समकितीनेसम्यकपणे प्रणमाय; साधननी उपयोगिता, स्वाधिकारे जाय. ॥ ५ ॥ त्यागी गृहस्थने योगनुं, आराधन सुखकार; असंख्य योग वीरे कह्या, मुक्ति हेतु निर्धार ॥ ६ ॥ ज्ञानी गुरुगमने लही, जैन शास्त्र अनुसार; योगाष्टक पूजा रचुं स्वर्गने शिव दातार. ॥७
प्रथम यम योग पूजा.
हिंसा सत्य यम कथ्या, अस्तेय छे जयकार;
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