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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११४ ) नरनारीरे प्रभु ॥ १ ॥ द्रव्य करुणा सर्व जीवोनां, दुःख दूरे करवां रे; सर्व जीवोना प्राणनुं रक्षण, कर कर्म यचरवांरे. प्रभु० ॥ २ ॥ यथाशक्ति उपकारो करवा, रोगादिकने हरवारे; द्रव्य करुणा एवो पहेली, भावी गुण अनुसरवारे. प्रभु० ॥३॥ भाव करुणा निज आतमपर, कर्म शत्रु संहरवारे; सर्व लोकने आतमज्ञाने, प्रतिबोधी उद्धरवारे. प्रभु ॥ ४ ॥ जैनधर्म जगमां फेलावे, भाव करुणा थातीरे; निजपर खतम शुद्धि. माटे, भाव दया प्रगटातीरे प्रभु ॥ ५ ॥ सात नये करुणाने जाणी, कहेणी रहेणीए रहेवुंरे, शत्रु उपर पण करुणा बुद्धि, राखी दुःखने सहेतुंरे. प्रभु० ॥ ६ ॥ ज्ञानथकी करुणा घट प्रगटे, हिंसा बुद्धि विघटेरे; ज्यां करुणा त्यां प्रभु छे निकटे, आतम भवमां न भटकेरे. प्रभु० ॥ ७ ॥ नेमि प्रभुए परणवा जातां मृगनी करुणा कीधीरे; वीरप्रभुए चंडकौशिकपर, करुणा कीधी प्रसिद्धिरे प्रभु ॥ ८ ॥ द्रव्य दयाथी नाव For Private And Personal Use Only
SR No.008633
Book TitlePooja Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1922
Total Pages417
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size15 MB
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