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(७२) धनधन ते जगमां नरनार, विमलाचलके
जानेवाले. ए राग. धन्य धन्य जगमा ते नरनार, निर्मल ब्रह्मचर्य धरनार, पूजो ब्रह्मचारी नरनार, धारो ब्रह्मचर्य सुखकार ॥ रत्नमणि कंचननी प्रतिमा, चैत्य करावणहार; अनंत गणुं फल तेथी पामे, ब्रह्मचर्य धरनार. धन्य० ॥१॥ सहस चोराशी मुनिवरदाने, जे फल नक्की धनार; ते फल विजयने विजयाजक्ते, अयुं धन्य अवतार. धन्य० ॥२॥ द्रव्यथी कायिक वीर्यनी रक्षा, आत्म रमणता सार; भावथी ब्रह्मचर्य छे एवं, सहु शक्ति दातार. धन्य० ॥ ३ ॥ सर्व प्रकारे विषयनी वांग, त्यागी जे रहनार; अनासक्तिए करे कृत्य सहु, ब्रह्मचारी शिरदार, धन्य० ॥४॥ देश थकी ने सर्वथकी जे, ब्रह्मचर्य धरनार; इन्द्रादिक तेना पद पूजे, देवो स्हाये थनार, जय० ॥५॥ दिव्य औदारिक त्रिकरण योगे, सर्व काम हरनार, बुद्धिसागर ब्रह्मचर्यनी, अनंत शक्ति उदार, धन्य० ॥६
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