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(३४) ए॥१॥ हिंसा जूठ चोरी तजो, परनारी निरधारहो नविक ॥ तनु धन ममता परिहरो, रय एगीनोय अंधकारहो नविक ॥ भाव०॥॥ दिशीगमन नियम करो, चनद नियम नित्य धा रहो भविक ॥ बत्रीश अनंतकाय तिम, अभक्ष्य बावीश निवारहो भविक ॥ भाव०॥३॥ कषाय मद विकया वळी, विषय निंश त्यागहो भविक । चित्त संतापना हेतुजे, तेथी न धरीये रागहो भविक ॥ भाव ॥४॥ अहं मम मोह मंत्रनो; त्याग करो गुणवंतहो भविक ॥विपरीत मंत्र म ननथकी, थान शाश्वत सुखवंतहो भविक ॥भा व०॥५॥अनंत रत्नत्रयी गुणै, चतन व्य वि चारहो भविक ॥कर्म विनाशयी संपजे, स्थीति सादि अपारहो भविक ।। भाव०॥६॥ अक्षत अक्षय सुख भणी, भावपूजा सुरसालहो भविक ॥ बुद्धि शिवसुख संपदा, पामे मंगल मालहो।
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