SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मवशे लौ दोषे जरीया, करो न निन्दा नाइ; बुद्धिसागर गुणने गातां, जगमा होवे कमाइरे. ११ मेहेसाणा. ॥पद ७ ॥ शामळ्यानी पाघमी-ए राग. जीवमा फुली फरे शुं फोक, तारं जग को नहीं; तारी काया सुकोमळ केळ के, ते पण अहीं रही, घर हाटांने चोपमारे, कुटुम्बने परिवार; आंख मीचाए साथमा रे, कोइ न आवे लगार, ता. १ हसतो खातो पहेरतो रे, फरतो मारे ल्हेर, काळ कोळीया आगळे रे, लागे शी त्यां देर. ता. २ पुण्य पापने नवी गणेरे, अनिमानना तोर, एक दीन एडवो आवशे रे, चाले नहि कंर जोर.ता.३ कम कपटने केळवे रे, कजीया ने कंकास; माहोमांहे लमावतो रे, मरी नरकमां वास. ता. ४ राजा रंकने बादशाहरे, हकीम होदादार; काळे सहु नक्षण की रै, तारो त्यां शोनार, ता. ५ मरी मरी सह चालीयारे, परगट चाले पेख; पृथ्वी श्रश्नही कोइनी रे, चेतन नजरे देख. ता.६ आज काल करतां थकां रे, दहामा वीती जाय; करवू होय ते कीजीएरे, पस्तावो पनी थाय, ता. ७ For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy