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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० जीवन मरण पण सरखुं लागे, प्रातम पद चिन्हे त्यारे. अल. ३ दलको नहीं जारे ए प्रातम, केवल ज्ञान तणो दरीयो; बुद्धिसागर पामंतां ते, जवसागर क्षणमां तरीयो. प्र. ४ मेहसाणा. ॥ पद. ७३ ॥ जे कोई प्रेमीअंश श्रवतरे, प्रेमरस तेना नरमांठरे - एराग ज्ञान को केम थाय, मूरखने ज्ञान कहो केम थाय; कोटी करो उपाय - मूरख० ३ बार मेघ जो साथ चढीने, वरसे मुशलधार; मगशेलीयो पाषाण न जीजे, जळ मध्ये नीरधार. १ श्वान पूढमी वांकी टाल | सिद्धि नहीं कराय; गंगाजल मां न्हाय कागको, कागपणुं नवीजाय. २ साबुए चोळीने कोयला, धूवे जलमां कोय, पण रंग बेरंग न हुवे, गर्दन गाय न होय.' दारु घटमां दूध जरो पण, मटे न दारुं वास, झांझवाना जल की कदी, मटे न जलनी प्यास 8 मायाकूट मूरखनी श्रागल, रणमांही ज्यु पोक, अंधा आगल आरशी जेम, जावे वाणी फोक. भागवत सनी आागलेरे, गांमा आगल गान, कंपि न करशे रत्न पारखुं, ए युक्ति दीलजान For Private And Personal Use Only ६
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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