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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ ॥ सिाक्षचस स्तवन ॥ आज मारां नयणां सफल श्रयां-ए राग. २३१ मनना मनोरथ सवी फल्या, श्री सिज्ञचल देखी; अनुन्नव आनंद बल्यो, अंध श्रा नवेखी. मन ? सहेजानंद श्री नाथजी, विश्वानंद वखाणो; शत्रुजय शाश्वतगिरि, तीन नुवननो राणो. मन २ मुक्तिराज विजयी सदा, अजरामर सुखवासी विमलाचलने वन्दतां, मिटे सकल नदासी. मन७ ३ पापो उरत्नवि प्रासिया, देखे नहि शु स्थान; गुरु नक्तिवंत प्राणीमा, पामे अमृतपान. मन दृष्टा दृश्यपणुं वरे, पाय पूजक पोते, रत्न चिंतामणि हस्तमां,क्यां तुं परमां गोते. मन०५ दर्शन उर्खन्न ताहरां, वीरला को पामे । बुद्धिसागर ध्यावतां, मळीया निश्चय गमे. मन ६ आजोल. ॐ शांतिः ॥ श्री शांतिनाथ स्तवन ॥ अजित जिणंदशुं प्रीतमी-ए राग. २३२ शांति जिणेसर वंदना, पूर्णानंदी हो सासय सुहगण, अप्पमिहयशासणधरा शिरधरतादोतिहुअणजपयाणा नियसत्ता प्रगटो करी, परसत्ता हो निजथी करी दर; साइ अणंत अस्कयशि, शुइली हो नोगी नरपूर कम्मग्यनी वग्गणा, नासंतांदो निम्मल निव्वाण; For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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