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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ ॥ पद २०७॥ मारु मारु तमे शुं करो रे, स्वप्ना जेवो संसाररे, झांझवाना जल जेहवा, सुख नथी तलनाररेः प्रेमे प्रत्तु गुण गाइए, कर्यु साथे थनाररे, चेत्या चेतनने पामीया, थयो जयजयकाररे. प्रेमे १ फुल्यो फोगट शुं फंदमां रे, फुले तेटलां फोकरे; गठमाठे बंधाणी गठमी, पमे पाबळ पोकरे.प्रेमे २ मायामा मुंजी | मरो रे, बाळ मोटा मरनाररे; मरनाराने रुवे मानवी, रोनारां जनाररे. प्रेमे ३ सारु सारु जीव शुं करे रे, नथी मायामां साररे; जेवा धुमामाना बाचका, जेवो वेश्यानो प्याररे.प्रे. ४ रोफ रोबम शुं मारता रे, जोने कसाश्ना ढोररे। अर्बु जळोनुं फुलवू, पुंठ जेवी मोररे. प्रेमे० ५ लाखचोराशीमां जम्यो रे, वेग्यां दु:ख अपाररे, पुण्ये मानवन्नव पामीयो, हजी हाथे न हाररे.प्रेमे. कोश्क घलाणा घोरमां रे, केइ बाळ्या मसागरे, जोनारानी गति एहवी, जीव जुटुं न जागरे.प्रेमे ७ सदगुरु सेवा साधनारे, धरो धर्मश्री प्यार बुझिसागर गुरुदेवनो, खरो मोटो आधाररे, प्रेमे ७ साणंद. women For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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