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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३॥ पर पुदगलमा जे रमे, पामे ते मन दुःख.... १७ मन वच काया निन्न , आत्मतत्त्व सुखकार, रत्नत्रयीनुं धाम , शुरुप निरधार. शुरूप परमातमा, सत्नाथो परखाय, सेवो ध्यावो पातमा, व्यक्ति नावे थाय, प्रेम नक्ति विश्वासथी, सेवो आतम देव, आतम ते परमातमा, कीजे तेन सेव. शुक्षरुपमा चेतना, रमती रहे निशदिन, तो प्रगटे सुख संतति,परपुद्गलथी जिन्न. आत्मस्वन्नावे रमशता, सत्य चरण अवधार, गुण स्थानक आरोहवा, पर परिणति निवार. २ परपरिणतिना नाशयो, स्थिरता घटमां पाय, अखएम चिन्मय चेतना, शुभ रुपता पाय. २३ सारसार सहु ग्रन्थ- सम्यक् चेतन ज्ञान, चेत्या तेमां जे रम्या पाम्या शाश्वत स्थान. २४ अनुन्नवज्ञाने नळखे, ज्ञानी शिवपुर पन्थ, निश्चय चरणे ते रम्या, सत्य थया निर्ग्रन्थ. २५ लोग पंकमा लेपता, ज्ञानी कबु न पाय, जलपंकजवत् निन्न ते, अन्तर मांहि सदाय. २६ अन्तर वृत्ति आतमा औदायिक नावे नोग, नोगवतां पण योगिजे, टाळे नवनय रोग. २७ बाह्मचरण चारित्रमा एकान्ते नदि धर्म, For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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