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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११॥ निजगुण बाजी खेले हंसा, सोवतहे संसारे प० १ अधिकारी विण नहि को समजे, करत नपायो कोटी; सर्व समायुं ने घटमांहि, बात नहीं हे खोटी. प० २ शक्ति नावेसो व्यक्ति रुपे, थावे तो सुख साचो अनुन्नव ताको पामी परगट, मायामां शीद राचो. ३ अन्तरदृष्टि विना जग मूढा, सत्य स्वरुप न बोधे, बुद्धिसागर अवसर पाकर, कोश्क पद निज शोधे. ४ शांतिः - - ॥ पद १५७ ॥ सब जन धर्म धर्म मुख बोले, अन्तर पमदो न खोलेरे सब-ए टेक. को गंगा जमना कुख्या, को जनूते नूल्या; को जनोइमां झंखाणा, फकीरी ले फुल्या. सब १ चालत चालत दोमचो दोटे, पण पासेनो पासे टीलां टपकां गप लगावी, शिवपुर केम पमाशे. मुंम मुंमावे गामरीयां जग, केशने तो रंगी माला मणका बैरी पहेरे, नित्य चाले पगदंमी. ३ धर्म न वरणे धर्म न मरणे, धर्म न करवत काशी; धर्म न जाति धर्म न जाति, धर्म न जंगलवासी. ४ गां खाखमांदि आळोटे, ते पण साचां खाखी; निर्वस्त्रां पशु पंखी फरेने, ममता दीलमा राखी. ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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