SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाद दशा दूर टाळोरे, श्रेणि कपकवर्या लटकाळीरे; मोह राय तणो मद गाळी. मल्लि ४ चार घातो कर्म खपावी रे, ध्यानांतरीए प्रन्नु आवीरे; केवल कमला घट पावी. मल्लि० ५ प्रत्नु नमवसरणमां सुहायारे,मळ्या इन्ज्ञदिक नर रायारे नव तत्व जिनेश्वर गाया. मल्लि० ६ प्रनु वाणी गुण पांत्रीसरे,अतिशय सोहे चोत्रीशरे; सिद्ध बुझ प्रन्नु जगदीश. मल्लि० ७ शाश्वत शिवपद झट पायारे,परमातम रुप सोहायारे; बुझिसागर एम गुण गाया. मल्लि विजापुर. ॥ पद १४०॥ साखी-प्रातम अनुन्नव रसिको, अजब सुन्यो विरतंत: निर्वेदी वेद न करे, वेदन करे अनंत. ॥१॥ राग रामग्री. माहारो बालुमो संन्यासी, देह देवळ मठ वाली मारो मा पिंगला मारग तज योगी, सुखमना घर वासो ब्रह्मरंध्र मधि आसन पूर। बाबु,अनहद तान बजासी.१ यम नियम आसन जयकारी, प्राणायाम अच्यासोः प्रत्याहार धारण धारो, ध्यान समाधि समासो. मा.२ मूळ नत्तर गुण मुशधारी, पर्यकासन वासी; For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy