________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सीख की रीति अर्थात् शान्तु मंत्री का वृत्तान्त
___
७९
सीख की रीति
__ अर्थात् शान्तु मंत्री का वृत्तान्त
उत्थान और पतन तो संसार का क्रम है। यह उत्थान-पतन मनुष्य के जीवन में आता है उसी प्रकार काल में, गाँव में, शहर में, जाति में, समाज में और धर्म में भी आता है।
जीव मात्र पर करुणा रखने वाला, प्राण जाने पर भी असत्य नहीं बोलने वाला, अदत्त वस्तु को कदापि ग्रहण नहीं करने वाला, तलवार की धार की तरह ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला और एक कौडी का भी संग्रह नहीं करने वाला उत्तम मुनि-जीवन है। इस मुनि-जीवन का वेष धारण करने पर भी उसके आचारों पर ध्यान नहीं देने वाला एक समय में चैत्यवासी साधुवर्ग था। वे चैत्यवासी मुनियों का वेष पहनते, जिनालयों में निवास करते, धन-सम्पत्ति अपने पास रखते और मुनि-जीवन के व्रत से निरपेक्ष रहते थे। उनमें से एक चैत्यवासी मुनि की ही यह कथा है।
(२) क्षितिप्रतिष्ठित नगर में शान्तु नामक एक वयोवृद्ध मन्त्री थे। उनकी निर्मल बुद्धि, उनके सिर के श्वेत बाल अपना परिचय स्वयं देते थे और उनका वैभव जीवन के रहनसहन में सदा प्रकट हुए बिना नहीं रहता था । यह सब होते हुए भी यह मंत्री, वैभव एवं कुशाग्र बुद्धि संसार की माया है, परन्तु वास्तविक कल्याण करने का साधन तो धर्म है, जिसे वे भूले नहीं थे, जिसके कारण राज्य-कार्य अथवा संसार के समस्त व्यवहार करने पर भी वे धर्म में चित्त रखते थे।
शान्तु मन्त्री का वैभव भवन, अश्वशाला, हस्तिशाला तथा नौकर-चाकरों में प्रतीत होता था, उसी प्रकार वह वैभव जिनालयों, उपाश्रयों एवं अन्न-भण्डारों में भी प्रतीत होता था। उन्होंने क्षितिप्रतिष्ठित नगर के मध्य में 'शान्तुवसही' नामक शत्रुजय की ट्रॅक के समान जिनालय का निर्माण कराया था जो अनेक जीवों में बोधिबीज उत्पन्न करने वाला और उसे दृढ़ करने वाला था। __ वे नित्य इस जिनालय के त्रिकाल दर्शन करने के लिए आते और जीवन के प्रत्यक
For Private And Personal Use Only