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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार का मेला अर्थात् चन्दन मलयागिरि २३ उसकी आँखों के समक्ष अन्धकार सा छा गया। वह गिर पड़ा। कुछ समय के पश्चात् वन की मन्द मन्द वायु से तनिक स्वस्थ हुआ और गाँव में जाकर एक सुनसान चबूतरे पर बैठ गया । कभी वह निःश्वास छोड़ता तो कभी 'हे देव! कहाँ चन्दन, कहाँ मलयागिरि ?' कह कर अपनी रानी मलयागिरि एवं सायर-नीर का विचार करता । 'कहाँ होगी मलयागिरि ? और नदी के दोनों तटों पर बैठे मेरे महा मूल्यवान सायर एवं नीर पुत्रों का क्या हुआ होगा?' इस प्रकार की विचारधारा में डूबा हुआ वह जिस मकान के चबूतरे पर बैठा था, उस घर की रूपवती स्वामिनी ने द्वार खोला और उसकी दृष्टि उस पथिक पर पड़ते ही वह तृप्त हो गई और वोली 'तुम परदेसी लोग हो, करो न चिन्ता साथ । कर भोजन सुख से रहो, हम तुम एक ही साथ ।।' 'हे नर-पुङ्गव ! तुम परदेसी हो, यह समझकर चिन्ता मत करो। आप घर में आओ, सुख पूर्वक रहो और भोजन करो; तनिक भी चिन्ता मत करो ।' गृह स्वामिनी के मधुर शब्द सुनकर चन्दन ने घर में प्रवेश किया। स्वामिनी ने उसे प्रेम पूर्वक स्नान कराया और भोजन कराया । सन्ध्या हो गई । तनिक रात्रि होने पर वह गृह स्वामिनी आकर चन्दन को कहने लगी, 'महानुभाव ! मेरा पति परदेश गया है। वर्षों व्यतीत हो गये परन्तु आज तक उसका कोई पता नहीं लगा । आप इस घर को अपना समझें । इस घर के समस्त सामान को, इस वैभव को और मुझे भी आप अपनी समझें । हम साथ Fo नदी के प्रवाह में बहता हुआ चन्दन अपने पुत्रों को पुकारता है-बेटा सायर! बेटा नीर! मगर उसकी आवाज़ नदी के प्रवाह में ही समा गई. For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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