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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे परम विद्वान जब भगवान महावीर के सान्निध्य में आये तो उनके जाज्वल्यमान आत्म-ज्ञान के समक्ष नतमस्तक ही नहीं पूर्ण रूप से समर्पित ही हो गये. क्षण मात्र में महापण्डित इन्द्रभूति गणधर गौतम बन गये और आत्म शुद्धि के पथ पर चल पड़े. “भगवत् तत्त्व क्या है?'' इस वाक्य से एक प्रश्न श्रृंखला आरंभ हुई जिसके फलस्वरूप वह ज्ञान प्रवाह आरंभ हुआ जिसने केवलज्ञानी तीर्थंकर के उद्बोधन के रूप में क्षेत्र और काल की सीमाएं लांघ जन-जन को प्रभावित किया. यह उल्लेखनीय बात है कि जैनागमों में तीर्थंकर द्वारा दिये उपदेश में स्थान-स्थान पर गौतम शब्द मिलता है. मात्र भगवती सूत्र में छत्तीस हजार प्रश्नों में से ज्यादातर के उत्तर 'हे! गौतम' शब्द से वाक्य आरंभ होते हैं. परमज्ञानी होने के साथ-साथ गौतम उग्र तपस्वी भी थे और फलस्वरूप विविध लब्धियों के धारक भी. ऐसे लब्धिशाली होने पर भी अहंकार का लेश मात्र भी उनमें नहीं था. वे परम विनयी, गुरु भक्त एवं सेवाभावी थे. गणाधिपति तथा सैंकड़ों शिष्यों के गुरु होने पर भी गोचरी अथवा भिक्षा के लिए वे स्वयं जाते थे. भगवान द्वारा आनन्द श्रावक के कथन को सत्य बताने पर अपनी भूल स्वीकार कर तत्काल क्षमा याचना के लिए जाना गौतम के विनय चारित्र का ज्वलन्त उदाहरण है. जैन वाङ्गमय गौतमस्वामी के जीवन की ऐसी अनेक घटनाओं स भरा पड़ा है, जो वर्तमान संदर्भो में भी उतनी ही प्रेरणादायक है. आत्मलब्धि के बल पर सूर्यकिरणों का आधार ले अष्टापद की यात्रा करना और वापस आकर अक्षीणमहानसी लब्धि के प्रभाव से सैंकड़ों तापस मुनियों का पारणा कराना संभवतः उनके जीवन की अंतिम For Private And Personal Use Only
SR No.008568
Book TitleGautam Nam Japo Nishdish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size5 MB
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