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(५९) असंख्य प्रदेशी कांकरे कांकरे, ध्याने स्थिर धनाराजी, अनंत सिद्धया सीजशे साधु-बुद्धिसागर प्याराजी. १
आंबील तपनी चार स्तुतिनी स्तुति वीरप्रभुए आंबिल तपने, नाख्यु नवि हितकारीजी, अर्हन् सिद्धने सूरि वाचक, मुनि सेवा सुखकारीजी; दर्शन ज्ञान अने चारित्रज, तप सेवो अतधारीजी, शासन देवो स्हाय करे सर, द्रव्य नाव सुखकारीजी.१
सीमंधर जिन स्तुति. महाविदेहे सीमंधरजिन, वैदेही देहे उता, केवलज्ञानी शालमरामी, उपकारी जग उत्ता; द्रव्यभावथी अंतर वाहिर, उपशम आदि जावथी, सीमंधरजिन बंदु ध्या, आत्मिक सीनादावो. १
श्री महावीर प्रभुनी स्तुति. उदयिक भावे प्रशस्थ वी, वंदेध्याचे भावथी, उपशम क्षयोपशम भावे सहु, वीरो ध्यावे दावथी.
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