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(९१) जड-पुद्गलथी न्यारो चेतन, ज्ञानादिकगुण धारीरे, बुद्धिसागर चेतन-धर्मे, पामे सुख नरनारीरे. ध० ५
१६ शान्तिनाथस्तवन.
( राग केदारो.) शान्तिजिनेश्वर अलख अरूपी, अनन्तशान्तिस्वामीरे; निराकार-साकार दो चेतना, धारक छो निर्नामोरे. शान्ति.१ परमब्रह्मस्वरूपी, व्यापक, ज्ञानयको जिनरायारे; व्यक्तिथो व्यापक नहि जिनजी, प्रेमे प्रणमुं पायारे. शान्ति० २ आनंदघन-निर्मल प्रभुव्यक्ति, चेतनशक्ति अनंतिरे;
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