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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * अई महावीरना मंत्रे, मंत्र योग छ मोटो; परमेष्ठी जपतां ने ध्यातां, मोह रहे नहि खोटो. योग० ३४ पिंडस्थादिकचार ध्यानथी, आतमशुद्धि करवी; साधनमांही मुंझावु नहि, साध्यदशाने वरवी. योग० ३५ द्रव्यने भावसमाधि भेदो, अनेक छे एम जाणो; रागने द्वेष नहीं त्यां समाधि, मुख्यभाव मन आणो. योग० ३६ दुर्गुणी व्यसनी केंफीचीजो-,खानारा नहीं योगी; सद्गुणी भक्तने ज्ञानी योगी, भोगेच्छाए भोगी. योग० ३७ षडावश्यक आदि साधन, पूजावंदनयोगो; मोक्षयोग तेहेते साधन, अंतर धरी उपयोगो. योग० ३८ योग छत्रीशी मेसाणामां, रची स्वपर हितकारी बुद्धिसागर सद्गुरु योगे, सर्वयोग उपकारी. योग० ३९ शोकनिवारकभावना ग्रन्थ. प्रणमी परमेश्वर विभु, प्रभु महावीर जिनंद; शोक निवारक ग्रन्थनी, रचना करुं सुखकंद. त्रिशलाराणी जननीने, सिद्धारथ भूप तात; वेउ स्वर्ग सिधावतां, पाम्या नंदि अशात. कुटुंब ज्ञातिने देशमां, रहियो शोक छवाइ; प्रभु महावीर चित्तमां, भावदया खूब आइ. नंदिवर्धन भाइने, तथा सर्वजनबोध दीघो वीरे ज्ञानथी, थयो शोकनो रोध. शोकनिवारकबोधनो, भावे करुं प्रकाश; चिंता शोकादिक टळे, रहे न चित्त उदास. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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