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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ अतिलखु ठंड ने उन्हु. कडवुं सडेलुं न खाबुंरे; अतिशय थाक परिश्रम तजवो, ऋस्तुनियमे न्हावुरे. दीर्घा० १२ हदनी बाहिर बेस फरं, जागवुं बोलवु त्यागोरे; अतिवाचन अतिश्रवणने जोबुं तेनो त्यजशो रागोरे. दीर्घा० १३ रात्रे बहेला उंघो व्हेला, निद्रा तजीने उठोरे; क्रोध मान माया आसक्ति, कामने अतिशय कूटोरे. दीर्घा० १४ बात पित्त कफ करनारां, भोजन पानने छंडोरे; दीर्घा० १६ दीर्घा० १७ दीर्घा० १८ दीर्घा० १९ मदिरा मांसथी अळगा रहेवुं, करो न जूड घमंडोरे, दीर्घा० १५ प्राणायामने आसन साधी, व्याधि न थावा दइएरे; बाल्यकालथी एवाभ्यासे, निरोगी थै रही एरे. वीशवर्षनी उम्मर सुधी, ब्रह्मचर्यने घरीएरे; दुष्ट कुटेवोथी दूर रहीए, सुखी जीवन वरीएरे. बार वर्षनी उमर थातां, कोनी भेगा न मृबुंरे; कुद्रती जीवनना नियमे, वर्ततां नहीं रोबुंरे. अतिचावी खोराकने खावो, जलपण पीवुं चात्रीरे, प्रकृति साचववी ज्ञाने, आतम निर्भय भावीरे. वनस्पति आहारे जीव, अतिलोभी नहि थार्बुरे; शुद्ध हवा जलस्थाने रहेनुं, निषेध्वने नहि खाबुंरे. बैरी विरोधी हाथे न खावुं, रात्रीभोजन छंडोरे, करी परीक्षा खावुं के फी - वस्तु मोहने खंडोरे . जीववामाटे खावुं पी, मूत्रनां वेग न रोकोरे विष्टानो पण वेग न रोको, वेग रोकंतां रोगोरे. दातण सारी रीते करखुं, दिवसे निद्रा न लेवीरे अतिसुखियाने पराश्रयीनी, जिंदगी दासना जेवीरे आतमज्ञानने प्राप्त करीने, मननो आधि टाळोरे; कषाय दुर्गुण टळतां निश्चय, सुख शांतिने भाळोरे, दीर्घा० २० दीर्घा० २१ दीर्घा० २२ दीर्घा० २३ दीर्घा० २४ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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