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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवलज्ञानस्वरूपी सची, जागृति है तुज श्याना; तुर्यावस्था जागृति वह तुज, अनंतज्योतिका स्थाना. आतम० १ जाग्रत होकर उठो चेतन ! तुम हो जगमें प्रधाना; बहुत गइ अब अल्प रही है, करलो अमृतपाना. आतम०२ जाग्रत् होते नहीं अंधियारा, जीतनिशान चढाना; गगनके गढमें अनहदधृनका, बायकुं वेगे बजाना. आतम० ३ अनुभव पाकर गुरुगमज्ञाने, आपोआपकुं गाना; बुद्धिसागर आतमआनंद-रसमें है मस्ताना. आतम० ४ चिदानंदरूप संभारो रे. निशानी कहा वतावुरे. राग गोडी. ए राग. चिदानंदरूप संभारो रे, करी वश मनवचकाय. चिदानंद. एकेक इन्द्रिय वश थतां रे, प्रगटे दुःख अनंत; पांचे इन्द्रिय वश थतां रे, आवे नहीं भव अंत. चिदानंद०१ शुभाशुभमनपरिणति रे, रोके सुख अनंत; सर्वेच्छाओ रोषतां रे, आत्मधर्म प्रगटत. चिदानंद० २ क्रोध मगन माया अने रे, लोभ प्रगटतो वार; कामविषयना स्वार्थने रे, वारे भवोदधिपार. चिदानंद०३ हिंसा जूठ चोरी ने रे, मैथुनवृत्ति निवार; अनंतमुखसागरप्रभु रे, प्रगटे शक्ति अपार. चिदानंद०४ आतम आपस्वरूपमा रे, रहो उपयोगे नित्य बुद्धिसागरपूर्णता रे, प्रगटे सत्य पवित्र. चिदानंद०.५ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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