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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ शरा क्षत्रीवटनी टेक धरीने चाले, लडी मोहनी साथ मुनिवर मुक्ति म्हाले; अन्तर सुरता लगनी लगावी घरमां बेठा, स्थिरोपयोगे अनुभव भवने सहेजे पेठा; सद्गुरु निथना दर्शने भवपार छ, सदुपकारी साधुनो अहो धन्य धन्य अवतार छे.॥१०५।। सद्गुरु मुनिने वन्दे श्रावक भाव धरोने, सद्गुरु मुनि गुण गावे श्रावक धर्म वरीने; अन्ध बनीने दृष्टिरागिया निन्दा करता, साधुनु अपमान करीने ठाम न ठरता; कुलगुरु कहीने पापिया संयत गुरु उत्थापता, मिथ्या मदिरा घेन वेर्या तीर्थवृक्षने कापता. ॥१०६।। नवीनपन्थनी इच्छा उत्कट मनमां जागी, कुमति लागी दील सुमति त्यांथी भागी; गृहस्थगुरुनो पंथ चलावे डाकडमाळे, प्रगटे छे कुपंथ जगत्मां आ कलिकाळे मुनिपंथने छेदवा दिगम्बर शरणुं आहे, नहीं श्रद्धा सूत्रनीते ज्ञान मारग शुं ? लहे. ॥१०७॥ कोइक पूछे सूत्रवात तो आडं बोले, बोल्यानुं नहि भान मूरख ते तरणा तोले; कपटकळाथो भोळा जनने ते भरमावे, बकवृत्तिने धरी ध्यान तो जूठ लगावे; कपटकळा भणकारथी भोळा जनने भोळवे, उस्सूत्र भाषण भाषीने ते सत्य सूत्रो ओळवे. ॥१०८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
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