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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૨. खाय पीवे ने वस्त्र धरे छे शास्त्राधारे, दीक्षा देइ भव्यजनोने भवजळ तारे; वेठीने बहु दुःख मुनिवर विचरे सारा, जंगम मुनिवर तीर्थ जगत्मां जय जयकारा; बहुमान कीजे साधुनुं त्वरित आतम तारीए, साधु निंदा द्वेष करतां भव्य जीवने वारीए. ७७॥ गुणो श्राद्धना नहि पोतामां मुनिने निंदे, बांधे बहुलां पाप उलटीमतिना छदे; गुण मूकी अवगुण ग्रहे छे निंदक पूरो, निंदा लवरी मुनिवरनी करवामां शूरो; शोक्य जेवा श्रावको ते दोषदृष्टि देखता, दोषनुं तो ठाम पोते नहि पोताने पेखता. ॥७॥ कोइ कहे छे वस्त्र धर्याथी साधु शानो? वस्त्र धरे त्यां राग एहवं मनमां मानो; मुनिवर होवे नग्न एहवु मनमा मार्नु, होवे मुनिवर नग्न एहवें सत्य पिछार्नु; आगम युक्ति न जाणता मत पोतानोताणता, जिन कल्पीने स्थविरकल्पने मूढमति नहि जाणता. १७९॥ पकडयुं गद्धा पुच्छ पामर कदी न मूके, हठ कदाग्रह जोरतोरमां ज्यां त्यां मूंके; नहि समजे जे युक्ति मुक्ति तेनी शुं ? थावे, करी तीर्थ उच्छेद सुखडां क्यांथी पावे; वस्त्र उपर राग तो निज शरीर उपर सोगणो, वस्त्र करतां राग मोटो देहनो मनमां भणो. ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
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