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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૬૬ hree बोले बोल अध्यातमरसना दरिया,सदा होय छे निर्ग्रन्थे समता रसना भरिया, एवा नहि देखाय मुनिवर नजरे भाळा, अधुना वर्ते जेह तेहना डाकडमाळा, माटे नवीन पन्धने काढी मुनि उत्थापिया, गुरु गृहस्थी मानीने दुर्मति पक्षे छापिया. ॥५३॥ अध्यातमना जाण मुनिवर अधुना सारा; तार्किकना शिरताज मुनिवरना अवतारा, अध्यातम लयलीन करे उपदेशो प्यारा, दुःसम पंचम काळ मुनिवर जग आधारा, सत्य अध्यातम साधुनुं मेाहे नहि लेपाय छे, विषय वासना त्यागधी समता रंग सुहाय छे. ॥५४ उपदेशक नहि होय गृहस्था घरमा राता, माहे ललना मुख देखीने मनमां माता, श्रवण करी अध्यात्म मोहना त्याग न करता, व्यापारे लयलीन मोहना वनमां फरता, वैरागी थइ बोलता स्त्रीधन मारां नहि हवे, वेर गया के भूली जईने कामभोग भोगवे . ||१५| अध्यातमना जाण मुनिवर निजगुण भोगी, रत्नत्रयीने योग साधता माटे योगी, sasमाले नवीन पन्थ नहि काढे साचा, बोले सुत्राधार मुनिनी निर्मल वाचा, कद्देता जेवुं ते करे काल योगे साधना, साधुनुं बहुमान करतां संयमनी आराधना. ॥५६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
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