SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૪૧ व्यभिचारनी वृत्ति परिहरशो,नीतिमय जीवनने धरशा; सद्गुरु साधु सेवा करशो. प्रभु. ३ निज अधिकारे को करा,निष्कामपणुं दिलमां धरशा; निज फर्जथी पाछा नहि फरशो. प्रभु. ४ दुर्गुण व्यसनाने परिहरा, बूरां कर्मों नहीं आचरशो; उपकार परस्पर झट करशो. प्रभु. ५ प्रतिवदलानो इच्छा त्यागी, परमार्थ करो थे वैरागी; गुरु संतना थाशो बहु रागी. प्रभु. ६ गुरुदेवनी श्रद्धा दिलधारो, अधिकारे धरो व्रत आचारा; दुष्टाशय प्रगट्या झट वारो. प्रभु. ७ शुद्धातम उपयोगी थाशो, समभावे वर्ती शिव पाशा; आडा पन्थे कदि नहीं जाशो. प्रभु, ८ समकितने ज्ञान चरण धरशा, दुष्ठोनीसंगत परिहरशा: प्रभु महावीरने पल पल स्मरशो. प्रभु. ९ आगम श्रुत ज्ञानने सांभळशो, प्रभु महावीरनी वाटे वळशो, भवसागरने वेगे तरशा. प्रभु. १० मरजीवा प्रभु मारग चालो, निज धर्म धरी शिवपुर भाळो; बुद्धिसागर सुखमां म्हालो. प्रभु. ११ - सज्जन संतनां लक्षण एवां जाणशो. सज्जन संतनां लक्षण एवां जाणशा, सज्जन संतने सेवा नरने नारजो. For Private And Personal Use Only
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy