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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ભાંગ મા ब्रह्म स्वरूप + सहजानन्दी स्वयं सदा तुं. चूक नहीं चेतन प्यारा; अलख अरूपी निर्भय रूपी सब ज्ञेयोका आधारा. सहजा. स्वयं प्रकाशी अज अविनाशी, पिण्डे ब्रह्माण्डे वासी; स्वयं अखेदी स्वयं अभेदी, हो जा पक्का विश्वासी. सहजा २ नामरूपसें तुं है न्यारा, ज्ञाता है नहि संसारा; · सुखमस्तीमें है मस्ताना, को नहि पाता तुज पारा. सहजा ३ अनन्तरूपे अनन्तनामे, अनन्तयोगे अवतारा; अकल कला छाइ सब जगमें, थका शोधमें जग सारा. सहजा. ४ वादविवादे चर्चा करते, पार न पामे नरनारी; बुद्धिसागर अनुभव स्फुरणा, परा वाणसें ललकारी. सहजा. ५ ॐ शान्तिः ३. સ. ૧૯૭૨ મૃગ શીષ વદ ૬ सत्पुरुष कर्तव्य. सन्तो जगमें रहना शुरा, मरना पण नहि मनमें डरना; कर्तव्यों का भेद समज कर, स्वाधिकार सें सब करना. सन्तो. १ पराश्रयी मत होना बहु, स्वातंत्र्ये निशदीन रहना; ब्रह्मदृष्टि सबमेहि घर कर, सत्य बात सबकुं कहना. सन्तो. २ मत हो गाफल मत हो दीना, सोऽहं ॐ निजकुं स्मरना; हाडो हाडे रोमे रोमे, निर्भयता सच्ची धरना. सन्तो. ३ सच्चा जगमें सबसे लेना, मेरा तेरा परिहरना; स्वयंरूप सब जगकुं मानी, पूर्ण ब्रह्म निज पद वरना. सन्तो. ४ पूर्णानन्दी होना पूरा, करो कर्म सब चकचूराः For Private And Personal Use Only
SR No.008543
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages979
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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