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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाचक २ श्री यशोविजय उपाध्यायगुणस्तवन. (ऍहली.) अली साहेली. ए राग. वाजकवरजी यशोविजयजी, मुनिवर वन्दन कीजीए; धन्यधन्यखरे, उपाध्याय दर्शन करतां मन रीजीए. १ सम्वतसत्तरशत जयकारी, जिन शासनश्वेतांवरभारी; वाचक प्रगटया जग सुखकारी, वाचक १ वैरागी, त्यागी, सौभागी, अन्तरदृष्टि घटमां जागी; जिनशासन शोभाना रागी, जंगम तीरथ ज्ञानी ध्यानी, परभावतणा नहि अभिमानी श्रुतज्ञाने वात न को छानी, वाचक. ३ भाषा पुस्तक रचना सारी, संस्कृत भाषामां हुंशियारी; शतग्रंथ रच्या ज्ञाने भारी, जिनसूत्र हार्द अनुभव जाणे, जे मत पोतानो नहिताणे; जे वर्ते चढते गुणठाणे, वाचक. ५ जिनशासन जेणे अजवाळ्यु, श्रुततीरथ जीर्ण यतुं वाळयु; नास्तिक पन्थोनुं बी बाळ्यु, वाचक. ६ अनुभवअमृतरसना भोगी, जे सहजपणे अन्तरयोगी; मिथ्यात्वभावथी नहि रोगी, महाधर्म प्रभावक जे शूरा, शाद्विकतार्किक पंडित पूरा; चीज्ञाने जे भरपूरा, वाचक.८ बहु देशोदेश विहार कर्या, उपदेशे जीव अनेक तर्या : गुर्जर देशे जे बहु विचर्या वाचक. ९ स्वर्गमन गाम डभोई थयुं, अविचल जेनुं जग नाम रघु जीवंतां शिव सुख दील लघु, वाचक.१० वाचक. ४ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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