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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ . - 1 UR ૫૪ सइहरखिउ रोमांदी सारीरु तहिजिणचंदं सणु देखीउ ॥५२॥ मंगलीकु ऊतारीयए घंट वाजइ सरूई, श्रीसंघु करइ प्रभावना जिणसासणि गरुइं, तउविधि वांदियउ वीतराग श्रीसंघु ऊतारीउ इणपरि सुंअकृत भंडारु तोइ, भव्यज्ञाविहिभरि आरती ताइ संघपति सइ हयाउ ॥ ५३ ॥ जे जिन भुवणतणां कृयई छेडइ, कहिया ते गृह चैत्य करावि यइ, सविशेषिहि सहिया अनि अनकाई कोइठामुमूहइंटी सरियउं तेउ मुम्हि भविय करावि जिअ सहूइ सांभरियउं ॥ ५४॥ ____उछ, जिनभुवयणि हरपिनियमणि करइ, सव्वु जयवंतु नितृ हिव त्रीजउक्षेत्रु कहि सुपठित्तू सणउ जीवजेतिना भणितू ॥५५॥ बीजउक्षेत्रु सुसभलउ ए वरलोयणेज भणिउं वीयराइ गुण मंभीर सो जिणहवयणु मृगलोयणे तसु नवि ऊपम काइ ॥५६॥ ___ वचन इकोका मूल नही वरलोयणुणेज वोलइ भगवतु तिहु भवणे धूजमाणीय मृगलोयणे सहू जाणइ ॥ ५७ ॥ ... अरिहंतु पढइ कवणव्युपजिन वचन तणउ वरलोपबुज्जइ लोकु अलोकु सेउजिसिद्धे तज सलही अइए मृगदे अइसिद्धि सजोगु ॥ ५८ ॥ गणधर करइजंपुर्वधरचरण मुयकेवलिहि करतु दसपूरव ४९ हर्षित. ६० रोमांचित. ५१ मंगलीक ५२ मोटी (गुर्वी) ५३ सुकृत भंडार. ५४ सर्व. ५५ त्रिजु क्षेत्र. ५६ जिनवचन.५७ उपमा. ५८ कांइ. ५९ एकेक. ६० जाणे. ६१ अरिहंत. ६२ पूर्वधर चरण, ६३ श्रुत केवली. प७५ '६२ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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