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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० ३ पण जाय न प्यारी, हृदय विहारी, अद्भूतकारी, अजरामर जय जय योगाकर, बुद्धिसागर पूर्ण प्रभाकर, प्रेमाकर, छो शुभ संस्कारी, मद मोहारि, धर्म प्रचारी, क्रोधारि, दुर्जन संगारि, दुर्गुणहारि, तत्वागारी, तृष्णारि भगवत् भजनारी, वृत्ति तमारी, सदैवसारी, भजनाकर ! जयजय योगाकर, बुद्धिसागर, पूर्ण प्रभाकर, प्रेमाकर. जेनी चिति जळमां, वसुधातळमां, प्राणिसकळां ने बळमां, वळी दावानळ, तळ वितळमां, द्रव्य सकळमां ने छळपां ज्ञानीनादळमां, रहि सह पळमां, ते विभु दिलमां, तत्वाकर ! जयजय योगाकर, बुद्धिसागर, पूर्ण प्रभाकर, मेमाकर. धीरज धरनारा, प्रभु भजनारा, तारण हारा, तरनारा, बहु कर्या सुधारा, सुख करनारा, संकट भारा, हरनारा बहु भक्ताधारा, जय करनारा, सद्गुरु सारा, स्नेहाकर ! जयजय योगाकर, बुद्धिसागर, पूर्ण प्रभाकर, प्रेमाकर दुहा. छुहुं आपतणो सदा, आज्ञा शिर भरनार; हे सुंदर भी सदगुरु, ऊतारो भवपार. श्री निर्जितेन्द्रिय सकळ गण, निर्जित विषय विकार; अजित सागरनी बन्दमा, होशो वारंवार, संवत विक्रम ओगणिश, पांसठ शाल सुहाय अधिक कृष्णनी अष्टमी, षष्टकथी सुख थाय. ९ लेखक - श्री बुद्धिसागरजीना शिष्य- अजिवसागर, For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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