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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१७ निज गुण होय तो गाजीए, पर गुण सविअकयथ्य जिम विद्या पुस्तक रही, जिम वली धन पर हथ्थ ॥ ४ ॥ बीजु तुझ नंदन कला, निति निति घटति जाय. राते केवल तगत, दिवसे अगोचर थाय. मोटी जसकीर्ति कला, पर उपगार विसेस; अखय अखंडित सर्वदा, मुझविलसे सवी देस. ढाल. इडर आंबा आंबलिरे ए देशी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सायर कहे वाहण सुणोरे न कहे मुझ गुण सार: का पूरा दुधमांरे, कहेतो दोष विचार. सबल एम न मान्यानि वात, ॥५॥ 11.11 तुन करे मुझ गुण ख्यात, मुझ मोटाइ छे अवदात सब० ॥१॥ जे दिन कूप सरोवरुरे, सुंके नदी अने निवाण; भर उनालें ते दिनेरे, वाधे मुझ उधान. प्रबल प्रताप रवितणेरे, नवि सुके मुझ निर; मेरु अगनथी नावे गलेरे, जो पिण हेम सरिर. सब० ॥ ३ ॥ हुं संतोष करी रहुरे, अविचल ने थिरथोभ; For Private And Personal Use Only सब० ॥ २ ॥ ठान रहित भमतां रहोरे, वाहण तुं स्यो अति लोभ. स० ॥ ४ ॥ खिमावंत गंभीर छुरे, नवि लोपुं मर्याद; तुं मुझ गुण जाणे नहीरे, स्युं तुझ स्युं मुझ वाद सब०॥ ५ ॥ वाहण कहे सुण सायरुरे, नवि सके तुं ठांम; उनाले जल अति धेरे, पिण नवी आवे कांम सब० ॥ ६ ॥ सोष न पांमु कोयथीरे, एम मद धरे एक; ? अक्रतार्थ. २ निस नित्य.
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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