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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ मोटा इच्छेरे माहरी सारें जगत प्रसिद्ध, सिद्ध अमर विद्याधर सुज गुण गाजे समृद्धि रजत सुवर्णना आगर मुज छे अंतर द्वीप, दीप जिहां बहु औषधि जिम रजनी मुख दीप; जिहां देखी नरनारी सारी विविध प्रकार, जाणी जग सवी जोइओ कौतुकनो नहि पार. ॥ २ ॥ 'ताजीरे मुज वनराजि जिहां छे ताल तमाल, जाति फल दल कोमल ललित लविंग रसाल; पूगी श्रीफल एला मेला नाग पुंनाग, मेवा जेहवा जोई ते हुवा मुज मध्य भाग. चंपक केतकी मालति आलति परिमलवृंद, बकुल मुकुल वलि अलिकुल मुखर सखर मचकुंद दमणो मरुओ मोगरो पाडलनें अरविंद, कुंद जाति मुज उपवने दी जनने आनंद मुज एक सरणे राता राती विद्रुम बेलि, दाखी राखी तेहमां में साची मोहणवेली; जप माला जपकारणें तस फल मुनिवर लिंत, वनिता अधरनी उपमा ते पुण्ये कामंत. 1 . नवग्रह जेणेरे बलि बांध्या खाटनई पाय, लोकपाल जस किंकर, जेणे जित्यो सुरराय; किओरे त्रिलोकी कंटक रावण लंका राज, 3 मुज पसाई तेणे कंचन गढमढ मंदिर साज. १ बले. २ खाटने. ३ पसाये. For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥५॥ ॥ ६॥
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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