SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७९ चालि. नमस्कार अरिहंतने, वासित जेहनुं चित्त, धन्य ते कृत पुण्यने, जीवित तास पवित्तः आर्तध्यान तस नवि हुए, नवि हुए दुरगति वास, भव क्षय करतारे समरतां, लहिए सुकृति अभ्यास. ||३४|| दुहा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मगुण सकल संपद समृद्ध, कर्मक्षय करि हुआ जेह सिद्ध; तेनुं शरण कीजई उदार, पामीई जेम संसार पार. ॥ ३५ ॥ चालि. १ समकित आतम स्वच्छता केवल ज्ञान अनंत, ४ केवल दर्शन वीर्य ते शक्ति अनाहत तंत; ૫ f सूक्ष्म अरूप अनंतनी अवगाहन जळयां काठ, अगुरु लघु अव्याबाधए प्रगव्या शुचि गुण आठ ॥ ३६ ॥ दुहा, सर्व शत्रुक्षये सर्व रोग, विगमधी होत सर्वार्थ योग; सर्व इच्छा लहे होई जेह, तेहथी सुख अनंतो अछेह ॥ ३७ ॥ चालि. सर्व काल संपंडित सिद्ध तथा सुखराशि, अनंत वर्ग भागे माए न सर्व आकाश; व्यावाधा क्षय संगत सुख लव कल्पे राशि, हनो एहन समुदय एहनो एक प्रकाश ॥ ३८ ॥ दुहा. सर्व काला कलणणंत वग्ग, भयण आकाश अणुमाण सग्ग; शुद्ध मुहणं तणं तथ्य देशी, राशि त्रिणे अणते विशेष. ॥३९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy