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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७१ मूरख आगेरे परमारथ कथा, त्रध्ये एकज रीत. एवं जाणीरे हूं तुज वीनवुं, किरिया समकित जोडि; दीजे कीजेरे करुणा अति घणी, मोह सुभट मद मोड. अं० १० ढाळ ४ थी. ईणि पेरे में प्रभु वीवो, सीमंधर भगवंतोरे; जाणुं हुं ध्याने, प्रगट हुं तो, केवळ कमळा कंतोरे। जयो जयो जगगुरु जगधणी. १ तुं मभु हुँ तुज सेवको, ए व्यवहार विवेकोरे; निश्चय नय नहीं अंतरु, शुद्ध निरंजन एकोरे. 'जिम जल सकलनदीतणो, जलनिधि जल होय भेळोरे; ब्रह्म अखंड सखंडनों, तिम ध्याने एक मेळोरे. तुज आराधन जिणे कर्यु, तसु साधन कुण लेखेरे; दूर देशान्तर कोण भमे, जे घर सुरमणि देखेरे. जयो० २ For Private And Personal Use Only जयो० ३ जयो० ४ अगम अगोचर कथा, पार कुंणे न लहीएरे; तिणें तुज शासन इम कहे, बहु श्रुत वयणडे रहीएरें. जयो० ५ तुं मुंज एक हृदय वश्यो, तुंहींज पर उपकारीरे, भरत भविक हित अवसरे, प्रभु मत मुंको विसारीरे. जयो० ६
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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