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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ ज्ञान दर्शन चरण लक्षण आत्मानुं छे खरु, अकेन्द्रिथी सिद्ध पर्यंत जीवव्यापी अनुसरु; शुभाशुभ जे कर्म तेनो न्याय कर्मज आपतुं, अपेक्षाए जीव ईश्वर न्याय मनमां लाव तुं. धर्म करतां कोटी भवनुं पाप आतम टाळतो, ध्यान अग्नि योगथी जीव कर्म ईन्धन बाळतो; आत्म शक्ति प्रगटवाथी कर्म मर्म हणाय छे, निज स्वभावे रमण करतां आतमा शिव पाय छे. आत्मभावे रमण करतां उगरकुं छे आपधी, कर्ममांहि रमण करतां उगर शुं बापथी; आत्मना सामर्थ्यथी तो सर्व शक्ति प्रगटती, आत्मना विश्वास योगे मूर्खता दूरे थती. मृत्यु पाछळ साथ आवे कर्म मनमां जाणशो, कर्मने वळी धर्म साथै सत्य मनमां आणशो; दुःखकारक कर्म जाणी धर्मवृत्ति आदरो, धर्म सागी मोहमां अरे केम भूली जन फरो. ज्ञानगुरुनो संग करीने ज्ञान चेतननुं करो, जे शुद्ध आत्मस्वभाव ते तो धर्म साचो अनुसरो; खरे शुद्ध आत्मस्वभावमांहि रमणथी सुख थाय छे, धर्मना व्यवहार भेदो हेतु रूप गणाय छे. सन्त करणी धर्मनी छे भक्ति मुक्ति हेतु छे, दोष अष्टादश रहित जिन ईश ए संकेत छे; आतमाने सिद्ध तेमां भेद कर्मना जाणवो, कर्म जातां आतमा ते सिद्धरूप पिछाणवो. For Private And Personal Use Only ११ १२ १३ १५ १६
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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