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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जय जिनवर श्री जगदीश निरञ्जन जग धणी, नमुं जिनवर पदकज प्रेम कर्म हखा भणी. निरक्षर अक्ष अनंत भदंत विराजता, . प्रगटावी केवलज्ञान जगत्मां छाजता; जय अशरण शरण अखंड महेश विलासी छो, जय गुणपर्यायाधार अज अविनाशी छो. .. जय अजरामर अरिहंत स्मरण शिव पन्थ छो, जय श्री वीतराग महेश ति श्री ग्रन्थ छो; मारे क्षण क्षण प्रभु आधार अन्य शुं जाणवू, बुद्धिसागर सहजानन्द परमपद आणq. आत्मसाधन. | दुहा ॥ अजरामर निर्मल प्रभु, चिदानन्द भगवान् ; घट घटमां व्यापी रह्यो, देखे सो मस्तान. बाह्य वस्तुमा शोधयु, अन्ते कशुं न हाथ; आत्मरमणता आदरे, लहिये त्रिभुवन नाथ. आत्मरमणता साधीए, पुष्टालंबन सार, अन्तरना उपयोगथी, लहिये भवजरूपार. अनन्त सुखनी ल्हेरियो, अन्तरमा प्रगटाय; परमप्रभुता पद मळे, जन्म मरण विघटाय, बाह्यत्तिमां शर्म शुं, शोधो अन्तर शर्म; अन्तर मांहि शोधता, प्रगटे शुद्ध सुधर्म. For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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