SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - १३६ सुरता पद. अजपा जापे-ए राग. परम प्रभुनां दर्शन करवा, सुरता अन्तरमा उतरी; विवेक दृष्टिथी सहु देखी, पूर्णानन्दे स्थान ठरी. परम प्रभु. १ माया शोधी खटपट बोधी, समभावे त्यांची चाली; असंख्यमदेशीचेतन शोध्यो, ससरूप देखी म्हाली. परम प्रभु. २ आत्मप्रभुजी पूर्ण जणाया, अनंतगुण पर्याय भर्यो। पोते कहेतो पोते करतो, स्वयंशक्तिथी स्वयं तो. परम प्रभु.१ दर्शन करतां एकमेक थई, समाई सुरता भेद टळ्यो; लूण गांगडो सागरमां जई, एकमेक थई त्यांज गळ्यों.परम प्रभु.४ सुरताचिति शक्तिमय थईने, क्षायिकभावे सिद्ध ठरे; बुद्धिसागर गहनशैली छे, अनुभवी मनमां उतरे. परम प्रभु. ५ ब्रह्मरन्ध्रध्यान. राग उपरनो. अवळी वाटे गुरु कृपाथी, हंस गगन गढ आयारे, हेजी. पद् चक्रोने भेदी नेमे, अलख देश सुख पायारे; हेजी. झळहळ झळहळ ज्योतिरे झळके, ब्रह्मरूप मन न्यारोरे. हेनी. अनुभवामृत चढी खुमारी, नेति नेति पद गायोरे; हेजी. शब्दतीर पण ज्यां नहि पहोंचे, महिमा त्रिभुवन छायोरे हेजी. २ पूर्ण प्रकाशी ज्या त्या देखु, पूर्णे पूर्ण मुहायारे हेजी. पूर्णपणुं ग्रहतां पण पूर्ण, नहि जाया नहि आयारे. हेजी. झळु. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy