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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ दुर्जननुं पण दया भावथी भव्य विचारे, स्वार्थ धरीने अन्य जीवोने कदी न मारे; बोले निशदिन सत्य चोरीथी दूर रहे छे, उत्तम तेनी जाति भावना उच्च लहे छे प्रभु गुरुनी भक्ति करतो चिदानंद राजी रहे, बुद्धिसागर जाति उत्तम सदाचरण ज्ञाने वहे. ४ गुरुनिन्दा. छप्पय छंद. गुरू निन्दाथी नाश कूळनो प्रथम विचारो, गुरू निन्दाथी मूढ बन्या केइ दिलमा धारो; गुरू निन्दाथी वित्त विनाशे ज्ञान न प्रगटे, गुरुनिन्दाथी उच्चमति पण क्षणमां विघटे; सद्गुरु निंदक जनोनु चित्त ठामे नहि ठरे, नीचमां पण नीच निंदक चतुर्गतिमा अवतरे. गुरू निंदा करनार बुडे ने अन्य बुडाडे, गुरु निंदा करनार भमे ने अन्य भमाडे; गुरू निन्दा करनार पापनो पुंज ग्रहे छे, गुरू निन्दा करनार दुःखना दीन लहे छे; गुरू निन्दा करनारनु अहो पाप जीवन जाय छे, उपकार घातक जाय भवमा भटकीने दुःख पाय छे. २ गुरू निन्दा करनार खरेखर अधम कह्यो छे, गुरू निन्दा करनार खरेखर दुःख लडो छ। For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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