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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परनारीनी संगे जगमां कोण उगरीया, परनारीनी संगे मुखडा कोइ न वरिया) परनारी त्यागे धन्य ते नर द्रव्यभावे बेश छ। बुद्धिसागर वचन सिद्धि परम सुख हमेश छे. - समाधिलय. धीराना पदनो राग. समाधिलय लागीरे, आनंदघन परखायो। झळहळ ज्योति जागीरे, चिदानंद घर पायो; धरी धारणा ध्यान धर्यु निज, तन्मयता थइ आज; ब्रह्मरन्ध्रमा आसन पू{, पाम्यो भुवननुं राज; सुखसागरनी ल्हेरोरे, देखी बहु हरखायो. समाधि. १ हरवू फरवु खावू पीवु, करूं सर्व व्यवहार; अन्तर सुरता अन्तर रहेती, लय लागी निधार; उलटी आंखे देख्युरे, कदी न जायो हुँ आयो. समाधि. २ जन्म मरण नहि मुजने जाण्युं, निश्चयनयथी बेश; कर्मलगी व्यवहारदशा छ, आनंद ध्याने हमेशा सिद्ध बुद स्वामीरे, दया गंग घट न्हायो. समाधि. ३ त्रिपुटी काशीनी अंदर, निर्मल आतम ज्योती आतम शंकर महादेवजी, देखतां उद्योतः मनना मेळा मळीयारे, आनंद रोम रोम छायो. समाधि.. जाण्यु अनुभव्यु मन निश्चय, छं आनंद स्वरूप; समभावे अन्तरमा खेलं, नावे भवभय धूपः क्षयोपशमना ध्यानरे, बुद्धिसागर घर आयो. समाधि.५ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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