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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्म रमणता चरण छ, निश्चयथी सुहावे; आत्मोपयोगी विरला, कोइ योगिओ पावे. आत्म० ॥२॥ भटकी बाह्य प्रदेशमां, सुख शांति हारो; अंतरमांहि उतरो, पामो भव पारो. आत्म० ॥ ३ ॥ मननी चंचळता थकी, चार गतिमा फरकुं; मन चंचळता वारीने, एक ठामे ठरवू. आत्म० ॥ ४॥ बाह्य विषयथी खेंचीने, मन अन्तर वाळो; बुद्धिसागर ध्यानथी, उच्च जीवन गाळो. आत्म ॥ ५ ॥ उपयोग स्वाध्याय. पैसा पैसा-ए राग.. नय एकांत न धारीए, वारीए वळी माया; परमार्थना काममां, वापरीए काया नय० ॥ १ ॥ वैर न दीलमा राखीए, भाखीए सत्यवाणी; दया धर्म फेलावीए, शिवसुखनी खाणी. नय० ॥२॥ धर्म नियमने आदरी, द्रढ श्रद्धा धरीए; संकट पडतां धर्मथी, कोई काळे न फरीए. नय० ॥ ३ ॥ निश्चयने व्यवहारनी, सापेक्षा समजो साध्य साधनता आदरी, निजभावमा रमजो. नय० ॥ ४॥ गुरुगमथी ज्ञान पामीने, चित्त समता धरशो; बुद्धिसागर ध्यानथी, सुख शाश्वत वरशो. : नय० ॥५॥ प्रभुनी प्राप्ति स्वाध्याय. पैसा पैसा-ए राग. परम प्रभुनी प्राप्ति करवा, नीति रीति राखोरे; परम प्रभुनी भक्तिथी झट, अनुभवामृत चाखोरे. प० ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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