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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ गुरुपदपंकजशरण ग्रहीने ज्ञान सुधारो, गुरुविना नहि ज्ञान आवशे कदी न आरो; सद्गुरु आशीर्वादे अन्तरमां अजवाळु, सद्गुरु मुनिना कृपाविता तो मनडुं काळं. सद्गुरु मुनिनी कृपाथी धर्म करणी सत्य छेः बुद्धिसागर मुनिगुरुथी आत्मशक्तिनुं कृत्य छे. परंनी आशा परिहरी चेतनने ध्याबो, पिंड विषे परमेश्वर वसीया तेने गावो; द्रव्यार्थिकनयथी नित्यज चेतन अवधारो, अनित्यपर्यायार्थिकनयथी जीव विचारो. अशुद्धचेतनता तजी झट शुद्धचेतनता करो; बुद्धिसागर शुद्ध चेतन परम महोदय झटवरो. समय मति षटकारक परिणमतां चेतनमां, असंख्य प्रदेशे अनन्त गुणमां समजो मनमां; षट् कारक नहि भिन्न जीवधी शास्त्रे दाख्युं, समजी सन्त जनोए शाश्वत सुख घट चाख्युं. शुद्धाशुद्ध वे भेदथी तो कारको पट जाणजो; बुद्धिसागर शुद्ध कारक शक्ति घटमां आणजो. सर्व विकलपे टळे ध्यानथी स्थिरता आवे, शुद्धादर्श समान दीलडं ध्याने थावे; यो सर्व जणाय ज्ञानथी जुवो विचारी, शब्दादिकथी व्यक्ति भावता प्रगटे सारी. काळ अनादि आत्मसत्ता संग्रहनयथी खरी, बुद्धिसागर आदि एवंभूतथी व्यक्ति वरी. अस्ति नास्तिता चेतनमां छे काल अनादि, For Private And Personal Use Only ॥ ६७ ॥ ॥ ६८ ॥ 11.99 11 ॥ ७० ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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